गुरुदेव की कर्मस्थली टैगोर टॉप
रामगढ की मनोरम प्राकृतिक छटा से आकर्षित होकर टैगोर ने यहाँ पर भूमि खरीदकर एक भवन बनवाया। वहीं पर साहित्य सृजन भी किया। उसका नाम ‘गीतांजलि’ रखा, बाद में यह स्थान ‘टैगोर टॉप’ के नाम से जाने जाना लगा। आज गुरुदेव का भवन खंडहर में तब्दील हो चुका है। भवन की छत, चौखट आदि गायब हो चुके हैं, दीवारें जर्जर हो गई हैं। रही-सही कसर गर्मियों में जंगल में लगने वाली आग ने पूरी कर दी है। जीर्ण-शीर्ण भवन पर कालिख जम चुकी है।